Tuesday, February 2, 2010

"मेरी नानी की दुआओं का असर"




सुनील कटारिया
जालंधर




26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस की शाम ! हॉस्टल के कॉमन रूम में बैठा मैं इन्टरनेट पर काम कर रहा था ! शाम के करीब सात बजे थे उस वक़्त और अगले दिन 27 जनवरी को हम सब विभाग के विधार्थियो को 28 , 29 जनवरी को होने वाले मीडिया फेस्ट में हिस्सा लेने के लिए गुरु की नगरी अमृतसर शाम को रवाना होना था ! क्यूंकि 27 जनवरी को अमृतसर पहुंचना था इसलिए गणतंत्र दिवस की शाम से लगातार मेरा सैल फोन बज रहा था मीडिया फेस्ट में जाने वालों के नाम लिखने के लिए, तभी एक मायूसी भरी खबर के साथ मेरे पिता जी का फोन आया की "सन्नी तेरे नानी जी अब नहीं रहे"!
इतना सुनते ही मुझमे मायूसी छा गई और उस रात मैं मुश्किल से हॉस्टल की मैस की केवल दो रोटिया ही खा पाया ! रात मुझे अच्छे से नींद भी ना आई क्यूंकि मेरे ख्यालों में मेरी नानी का चेहरा जो बार बार आ रहा था ! रात नींद ना आते देख मैंने 12 बज कर 30 मिनट पर अपनी माँ और पिता जी से फोन पर बात की तो मन को कुछ सुकून मिला ! ख़ैर रात के करीब 1 बजे होंगे जब मुझे नींद आई ! सुबह फिर 4 बजे का अलार्म बजते ही मैं उठ गया क्यूंकि उस दिन मेरी रेडियो पर ड्यूटी थी और मुझे रेडियो स्टेशन पर 5 बज कर 30 मिनट से पहले रिपोर्ट करना था ! वैसे तो ड्यूटी दोपहर 12 : 30 पर समाप्त होती है लेकिन उस दिन अमृतसर जाने को लेकर मुझे 10 बजे ही अपने सीनिअर से छुट्टी लेनी पड़ी !
रेडियो स्टेशन से वापिस यूनीवर्सिटी पहुंचा तो अमृतसर जाने के लिए विभाग के दफ्तर से कुछ कागजात तैयार करवाए और अपने सहयोगी गुरदीप सिंह , रामिश नकवी , अमृत सिंह को लेकर कभी डीन (विधार्थी) तो कभी डीन (अकादमिक) के हस्ताक्षर के लिए इधर उधर जाते रहे ! ऐसे कुछ काम करते करते दोपहर का 1 बज गया, सुबह 4 बजे का खाली पेट था उस दिन मैं और तभी मेरे साथी गुरदीप की बहन अमृत जो हमारी सीनिअर भी रही हैं उस दिन कुछ काम से यूनीवर्सिटी आई और साथ में खाना भी लेकर आई ! तभी हमने खाना खाया और कुछ ही देर में विभाग के पुराने विधार्थी और आज कल पंजाबी ट्रिबुन अखबार के सम्पादक वरिंदर वालिया विभाग के सेमीनार हॉल में पहुंचे ! ये समागम वरिंदर वालिया जी को सम्मानित करने के लिए रखा गया था जिसमे यूनीवर्सिटी के उप- कुलपति डॉ. जसपाल सिंह भी मौजूद थे ! समागम में पिछली कतार में कुर्सी पर बैठा मैं समागम में पहुंचे लोगों की बाते सुन तो रहा था लेकिन मेरा दिमाग कहीं और ही था ! दिल में मायूसी लिए शाम करीब 4 बजे हम विभाग से बस में बैठे और अमृतसर के लिए रवाना हो गये ! जैसा अक्सर होता है की जब किसी शिक्षा संस्थान की टीम इकठे कहीं जाती है तो मस्ती करती हुई जाती है , मेरे सहयोगी बस के बिलकुल पिछली तरफ अपनी मस्ती में मस्त थे और मैं बस की पहली सीट पर बैठा अकेला ज़ेहन में कुछ लिए अपनी मंज़िल (अमृतसर) पर पहुँचने के लिए आतुर था ! रात हम 11 बजे के करीब अमृतसर पहुंचे !
अगले दिन यानि मीडिया फेस्ट के पहले दिन हमे सुबह 9 बजे बी.बी.के. डी.ए.वी कॉलेज फॉर वोमेन पहुंचना था जहां ये मीडिया फेस्ट होना था ! अपनी यूनीवर्सिटी की तरफ से इस फेस्ट में हिस्सा लेने वाले विधार्थिओं के नाम दर्ज करवाने के बाद हम सब हिस्सा लेने वाले विधार्थी अपनी अपनी आइटम का इन्तजार करने लगे ! मैंने भी इस मीडिया फेस्ट में करीब 3 आइटमो में हिस्सा ले रखा था !
इन सभी गतिविधियो के दौरान मेरे समक्ष कई बार मेरी नानी से जुडी यादें मेरी आँखों के सामने आती रही ! मीडिया फेस्ट के दुसरे और अंतिम दिन यानी शुक्रवार 29 जनवरी को मेरी माता जी और मेरे कुछ रिश्तेदार नानी की अस्थियाँ प्रवाह करने के पश्चात शाम के समय ब्यास से लौट रहे थे और यहाँ दूसरी तरफ मीडिया फेस्ट में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागीओं के लिए परिणाम घोषित हो चुके थे ! परिणाम घोषित होते ही 6 बज कर 30 मिनट पर मैंने अपनी माता जी को फोन कर परिणाम के बारे में भी बताया ! उस मीडिया फेस्ट में हमारी यूनीवर्सिटी ने करीब 7 अवार्ड झटके ! ये शायद मेरी नानी की दुआओं का ही असर था का इस मीडिया फेस्ट में मुझे 4 अवार्ड मिले ! नानी को मेरा शत शत प्रणाम और सलाम !

"सर मेरा झुका रहता है बुजुर्गो के आगे,
छुपी रहती हैं इसलिए दुनिया में यादें"

9 comments:

  1. kisi ko jameen mili kisi ko makaan .ma ghar me sabse chota tha mere hise maa aai.tum se bhi jyada mayusi tumhari maa ko hui hogi.akhir vo tumhari maa ki maa thi.likhte acha ho

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  2. what to write ,bachpan main maa baap se jyada attachment grand parents se hoti ,jab papa daant rahe hotey hain to jo haath bachane ke liye aage aate hain wo grand parents ke hi hote hain ,kabhi jinse raja rani ki kahaniya suni ho,unke jaane se mann to dukhega hi,par yeh b srishti ka niyam hai ki jo aaya hai use jaana to hoga hi,so jaane walon ki aatma ki shanti ke liye bhagwan se dua karni chahiye,yeh soch ke hosla rakho ki kuch log aise b hain jinke paas is umar main grand par. to kya parents b nahi,look at me...m crying..

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  3. it's really a sad moment for you because i also gone through this experince when my Grandfather had no more..... i really "god promise" gone through such type of experience which i never expect in my past life..In that time i remembered my childhood when my Grandfather do all that thing which in that age is not possible for them.....but keeping in mind that God create them and we have to face this extraordinary scence once a life....so it all sbout god wishes......

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  4. superb written..........very emotional and touching......

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  5. blessings of your "Nani Maa" will always remains with you,,,the way you pent up your inner heart feelings..is really hearttouching..."Nani maa" is more than "maa" because she is "maa of our maa"
    Someone has rightly said,, "Tusi raaji je apna rab krna, maa di khidmat raj raj krna, je tusi ghar bethe e apna "Haj"krna maa di pooja raj raj krna, jado mai kise da naa laina sikhya
    rabb kehan naalo pehla maa kehna sikhya"

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  6. Aadhere ne kabhi roshni nai dakhi .
    maut ne kabi zindagi nai dakhi
    jo kehte hai mit jati hai yaadie
    unho ne kabi aapki yaade nai dakhi.

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  7. maa varga ghanchawa buta mainu nazar na aaya . l

    e k jithon cchhan udhari rab ne swarag banaya.

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  8. हाँ कुछ ऐसे ही उन बूढ़ी आखों ने मेरे बचपन को निहारा था कभी, मेरे उलझे बिखरे मनं को भी कोई सहारा था कभी, एक निर्मल कोमल काया ने मेरे बचपन को सहलाया था , बिछड़ा वोह ऐसा चंद ही वर्षों में , मेरे दिल को सुकून फिर आया न कभी! आज भी उन दुआओं के सदके आस्मां को छूए जातें हैं! हाँ नहीं खबर मुझे , उस माँ की याद में लमहें कब गुज़र जाते हैं, बस आंसू ही यादों के पैगाम लाते हैं , हाँ नानी माँ ! मुझे भी वोह बचपन के दिन जब याद आते हैं ! तुमने जो देखे थे मेरे लिए सपने , तेरी दुआओं से वक़्त के साथ-साथ सच हुए जाते हैं, सब कुछ है पर तुम ही नहीं हो, अब तो तुम्हारे स्पर्श को तुम्हारी बच्ड़ी के बछड़े, (जो तुम हमें गले लगा प्यार से बुलाती थी ) तरस जाते हैं ! by Inderpreet K Ahluwalia(Preet)

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  9. Dear,
    it looks very cool and impressing but how can i read it ? its in hindi. :(
    zahid imroz

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