Thursday, April 8, 2010

एक युवा जर्नलिस्ट की दिल की आवाज़ !!


मेट्रो कार्ड को वापस कर उससे मिले पचास रुपये से उस दिन का किराना घर में आया था। मुझे मेरे दोस्त को उस कार्ड को वापस कराते वक्त एक ही शर्म महसूस हो रही थी कि क्या घंटा जिंदगी जी रहे हैं हम। दोनों पेशे से पत्रकार लेकिन अगर कोई तीसरा शख्स रास्ते में मिल जाए या दफ्तर आकर चाय पीने को कह दे तो ये भी नही कह सकते कि हम फटेहाल हैं। जब मैं पैदा हुआ था तो घर में तरक्की ही तरक्की हुई थी। जैसे-जैसे बड़ा हुआ घर का धन धीरे-धीरे मुझ पर खर्च होता चला गया। क्या दिमाग चला कि यह गड़बड़ लाइन चुन ली। गड़बड़ी हमारे साथ जिंदगी ने भी की। समय बदलने के साथ कई बुरे शौक लग गये।
पहले नौकरी की चिंता में पीते थे। फिर नौकरी मिली तो काम के तनाव में। फिर पैसा ना मिलने के गम में और अब तो इसलिए पीते हैं कि साला नहीं पिएं तो नींद ही नहीं आती। इस जिंदगी ने सब कुछ खत्म कर दिया। जिसकी शादी हो गई है, वो रोज खून के आंसू रोता है। वह बीवी को ऐसे गरियाता है जैसे उसने किसी और को अपना लिया हो। और जिनकी शादी नहीं हो रही वो इसलिए परेशानी में हैं कि शादी के बाद बीवी को क्या खिलाएंगे?
पांच साल में इतने पैकेज काटे, कई खबरें लाइव की। कई फोनो लिए लेकिन जिंदगी के लिए कुछ नहीं कर पाए। हमे निचोड़ लिया गया। हमारे हक की अवाज का गला घोट दिया गया। हम हर रोज एक ऐसे बलात्कार का शिकार होते गये जिसने हमारे अंदर के जुनून को जंग लगा दिय़ा। ऐसा नहीं कि हम अकेले हैं। हम जैसे कई पत्रकार हैं जो इस मीडिया में मंदी की मार के साथ-साथ अपने-अपने दफ्तर की अंदरुनी दिक्कतों का शिकार हो रहे हैं जो अब मीडिया के लिए आम हो गई है। क्या होगा... क्या हम ऐसे हो जाएंगे.... हम तो पूजा-पाठ धर्म-कर्म में विश्वास भी करते हैं। क्या अब नास्तिक होकर देखें?

लेखक युवा टीवी पत्रकार हैं और उन्होंने नाम ना प्रकाशित करने का अनुरोध किया है |


Friday, April 2, 2010

ਗਾਂਧੀ ਨੂੰ ਹਰ ਨੋਟ ਤੇ ਲਾਇਆ ਭਗਤ, ਸਰਾਭਾ, ਗਿਆ ਭੁਲਾਇਆ


ਦੇਸ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ, ਫੇਰਾ ਪਾਇਆ
ਮੁੜ ਕੇ ਸਭ ਕੁਝ, ਚੇਤੇ ਆਇਆ
ਬੇਲੀ ਮਿੱਤਰ, ਖੂਹ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ
ਵਗਦਾ ਪਾਣੀ, ਨੱਚਦੀਆਂ ਛੱਲਾਂ
ਸੱਥ ਵਿੱਚ ਹੱਸਦੇ, ਬਾਬੇ ਪੋਤੇ
ਕੁਝ ਲਿਬੜੇ ਕੁਝ, ਨਾਹਤੇ ਧੋਤੇ
ਤਾਸ਼ ਦੀ ਬਾਜ਼ੀ, ਛੂਹਣ ਛੁਹਾਈਆਂ
ਬੋੜ੍ਹ ਦੀ ਛਾਵੇਂ, ਮੱਝੀਆਂ ਗਾਈਆਂ
ਚੇਤੇ ਕਰ ਕੇ, ਮਨ ਭਰ ਆਇਆ
.....
ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਹੁਣ, ਸ਼ਕਲ ਬਦਲ ਗਈ
ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਹੁਣ, ਅਕਲ ਬਦਲ ਗਈ
ਖੇਤੀ ਦੇ ਹੁਣ, ਸੰਦ ਬਦਲ ਗਏ
ਕੰਮ ਦੇ ਵੀ ਹੁਣ, ਢੰਗ ਬਦਲ ਗਏ
ਟਾਹਲੀ ਤੇ ਕਿੱਕਰਾਂ ਮੁੱਕ ਗਈਆਂ
ਤੂਤ ਦੀਆਂ ਨਾ, ਝਲਕਾਂ ਪਈਆਂ
ਸੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁਣ ਨਾ, ਮਹਿਫ਼ਲ ਲੱਗਦੀ
ਬਿਜਲੀ ਅੱਗੇ, ਵਾਂਗ ਹੈ ਭੱਜਦੀ
ਪਿੰਡ ਵੇਖ ਕੇ, ਚਾਅ ਚੜ੍ਹ ਆਇਆ
.....
ਸ਼ਹਿਰੀ ਸੜਕ ਨੂੰ, ਸੁਰਤ ਹੈ ਆਈ
ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਪਰ, ਪਈ ਤੜਫਾਈ
ਬਾਈਪਾਸਾਂ ਤੇ, ਟੋਲ ਨੇ ਲੱਗੇ
ਐਪਰ ਬੰਦਾ, ਪਹੁੰਚੇ ਝੱਬੇ
ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੇ, ਵੱਟ ਹਨ ਕੱਢੇ
ਤਾਂਹੀਂ ਮਿਲਾਵਟ, ਜੜ੍ਹ ਨਾ ਛੱਡੇ
ਵਿਓਪਾਰੀ ਹੈ, ਹੱਸਦਾ ਗਾਉਂਦਾ
ਮਾੜਾ ਰੋਂਦਾ, ਘਰ ਨੂੰ ਆਉਂਦਾ
ਅਜੇ ਰੁਪਈਆ, ਪਿਆ ਕੁਮਲ਼ਾਇਆ
ਭਾਰਤ ਨੇ ਹੋਰ, ਦਗਾ ਕਮਾਇਆ
ਗਾਂਧੀ ਨੂੰ ਹਰ, ਨੋਟ ਤੇ ਲਾਇਆ
ਭਗਤ, ਸਰਾਭਾ, ਗਿਆ ਭੁਲਾਇਆ.....................


ਲੇਖਕ                                                       ਧੰਨਵਾਦ
ਜਸਦੀਪ ਕੌਰ                                        ਸੁਨੀਲ ਕਟਾਰੀਆ

Monday, March 22, 2010

ਕੰਬ ਗਿਆ ਜਮੀਨ, ਅਸਮਾਨ ਲੋਕੋ,

                                                
                                       ਕੰਬ ਗਿਆ ਜਮੀਨ, ਅਸਮਾਨ ਲੋਕੋ,                     
                                       ਜਦੋਂ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਫਾਂਸੀ ਚੜਨ ਲੱਗਾ।

                                        ਤਖਤੇਦਾਰ ਦੇ ਉੱਤੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਕੇ,
                                        ਗੱਲਾਂ ਆਖਰੀ ਸੀ ਹੁਣ ਕਰਨ ਲੱਗਾ।
                                       ਰਾਜਗੁਰੂ, ਸਖਦੇਵ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ,

                                       ਭਾਰਤ ਮਾਤਾ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਨ ਲੱਗਾ।
                                        ਦੇਖ ਕੀਨੂੰ ਸਨ ਉਹ ਕੁਰਬਾਨ ਹੁੰਦੇ,
                                      ਸ਼ਾਇਰ ਸ਼ਾਇਰੀ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰਨ ਲੱਗਾ।

Thursday, February 11, 2010



जालंधर दूरदर्शन के प्रोग्राम "5 वजे लाइव" की एक झलक ! !

Tuesday, February 9, 2010

कैसा देस है मेरा ?





सुनील कटारिया
पटियाला



"ऐसा देस है मेरा" बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्म वीर ज़ारा के गीत के ये बोल तो आपको याद ही होंगे ! खैर अब बात चली है हमारे देश की तो फिर इस देश में शिक्षा की बात होना लाज़मी है ! लेकिन आज इसी देश में ज्ञान और शिक्षा का दीप जला कर देश के भविष्य को उज्ज्वल करने वाले शिक्षको को सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना पढ
रहा है ! धरने, भूख हड़तालें, रैली लगता है सरकारों के लिए अब आम सी बातें हो गयी है !
ऐसा ही एक विरोध प्रदर्शन बादल सरकार के खिलाफ 7 फरवरी रविवार को पंजाब के कपूरथला में हुआ जहां ई जी एस अध्यापक अपनी मांगो को लेकर सिविल हस्पताल कपूरथला की पानी की टंकी पर चढ़ गए !
शिश्रा मंत्री डा. उपिन्द्रजीत कौर के शहर के शालीमार बाग में अपनी मांगों को लेकर रोष प्रदर्शन कर रहे ई जी एस शिक्षकों में से इसी बीच शिक्षक किरणदीप कौर ने स्वयं को आग लगा ली। ई जी एस शिक्षक पिछले 32 दिनों से कपूरथला में रोष धरने कर रहे थे ! ये शिक्षक बाहरवीं श्रेणी में अपने अंक बढ़ाने के लिए विभाग की नीति के अनुसार परीक्षा का मौका लेने की मांग कर रहे थे। आखिरकार 90 प्रतिशत जलने के बाद देर रात किरणदीप ने दम तोड़ दिया और जैसा की हमारी सरकारों का काम रहा है की मरने के बाद दे दी जाती है सहायता राशि और इसघटनाक्रम में भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ !

सरकार ने दस लाख की सहायता राशी के साथ परिवार के एक सदस्य को नौकरी और ई जी एस अध्यापकों की मांगे भी मान ली ! राज्य सरकार ने किरणदीप की मौत के बाद समझौता कर मामले पर पानी डालने का काम किया ! ये पहला मामला नहीं है की सरकारों की और से विरोध प्रदर्शन कर मरने के बाद सहायता राशी के रूप में कुछ रूपये दे दिए जाते हैं ! पंजाब के शाही शहर पटिआला में आज से कुछ साल पहले परांठे की रेहड़ी लगाने वाले गोपाल कश्यप ने भी मांगो को लेकर अपने आप को आग लगा ली थी और मरने के बाद सरकार ने मांगे भी मान ली थी और 10 लाख की सहायता राशी के साथ साथ परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का भी वादा किया था !

देश के चर्चित घटनाक्रम में चाहे बात हो आरुशी हत्याकांड की या फिर रुचिका केस की, आखिरकार इस महान भारत में इन्साफ के लिए मरना ज़रूरी है क्या ? और हमारे देश की सरकारे भी कितनी अजीब हैं की मांगे तो मान लेती है मगर मरने के बाद ! दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश कहे जाने वाले मेरे इस देश की ये सरकारें आखिरकार कब नींद से जागेंगी ?

आखिर ये कैसा देस है मेरा ?

ਗਜ਼ਲ- ਕੇਹਰ ਸ਼ਰੀਫ਼

ਬੰਦ ਦਰਵਾਜ਼ਿਆਂ ਵਾਲੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਬੋਲਦੇ ਲੋਕੀ ।
ਪ੍ਰਛਾਵੇਂ ਆਪਣੇ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਧੁੱਪ ਨੂੰ ਟੋਲ਼ਦੇ ਲੋਕੀ ।

ਕਦੇ ਉੱਚੀ, ਕਦੇ ਨੀਵੀਂ ਕਿ ਸੁਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਲੋਕਾਂ ਦੀ
ਸਿਰੋਂ ਜਦ ਪਾਣੀ ਟੱਪ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਫਿਰ ਹਨ ਖੌਲ਼ਦੇ ਲੋਕੀ ।

ਜ਼ਮਾਨਾ ਬਦਲ ਜਾਂਦੈ, ਬਦਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤਾਸੀਰ ਆਪੇ
ਦਿਲਾਂ ਵਿਚ ਪੈ 'ਗੀਆਂ ਘੁੰਡੀਆਂ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਖੋਲ੍ਹਦੇ ਲੋਕੀ ?

ਬਿਠਾ ਕੇ ਕੋਲ਼ ਗੈਰਾਂ ਨੂੰ ਤੇ ਸਿਜਦੇ ਕਰਨ ਬਹਿ ਜਾਂਦੇ
ਕਿਉਂ ਆਪਣੇ ਭਰਾਵਾਂ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਦਿਲ ਫੋਲਦੇ ਲੋਕੀ ?

ਤਕਦੀਰਾਂ ਦੇ ਸੰਗਲਾਂ ਵਿਚ ਖੁਦ ਹੀ ਕੈਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ
ਕਿਸਮਤ ਹੱਥੀਂ ਘੜ੍ਹ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਗੌਲ਼ਦੇ ਲੋਕੀ ?

ਦਰਖ਼ਤਾਂ ਨੂੰ ਨਿਕਲ ਆਵਣ ਨਵੇਂ ਪੱਤੇ ਤਾਂ ਰੰਗ ਬਦਲੇ
ਖ਼ਿਜ਼ਾਂ ਦੇ ਬੀਤ ਜਾਵਣ 'ਤੇ ਵੀ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਮੌਲ਼ਦੇ ਲੋਕੀ ?

ਸਿਰ ਵੀ ਕਾਇਮ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ 'ਤੇ ਜੀਭਾਂ ਵੀ ਸਲਾਮਤ ਨੇ
ਜ਼ੁਲਮ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਹਰ ਪਾਸੇ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਬੋਲਦੇ ਲੋਕੀ ?

सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना--अवतार सिंह पाश



मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती,
पुलिस की मार भी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
मगर सबसे ख़तरनाक नहीं होता !

कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना और
मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना बुरा तो है
मगर सबसे ख़तरनाक नहीं होता !

सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना
तड़प का न होना और सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आना
मगर सबसे ख़तरनाक नहीं होता !

सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
जो आपकी कलाई पर चलती हुई भी
आपकी नज़र में रुकी होती है !

सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है

सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं पड़ता !

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए !

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना

अवतार सिंह पाश

आखिर कब बदलेगी ये भद्दी सोच ?




सुनील कटारिया
पटिआला



दिन शनिवार , तारीख 6 फरवरी रात के 8 बजकर 45 मिनट , जगह राजपुरा रोड , पटिआला और मंज़िल पंजाबी यूनीवर्सिटी ! दूरदर्शन जालंधर पर एक वर्कशाप में हिस्सा लेने के बाद मैं रात 8 : 30 पर बस स्टैंड पटिआला पहुँचते ही पंजाबी यूनीवर्सिटी के लिए ऑटो में बैठा ! बसों के किरायों में बढोतरी के कारण ऑटो वाले सरदार जी सभी सवारियों को बैठने से पहले कह रहे थे कि 7 रूपये लगेंगे ! खैर सब बैठ गए !

दो लड़के 23 - 24 साल के भी उसी ऑटो में बैठे हुए थे जो शराब पी कर पूरे टल्ली हुए पड़े थे और ऑटो वाले से कह रहे थे कि “असीं तां 5 रपिये ही दवांगे ” ! खैर सरदार जी समय कि नज़ाकत को समझते हुए कहने लगे “जीवे तुहाडी मर्ज़ी जनाब ” ! अब बस स्टैंड से ऑटो चलते ही हम कुछ ही समय में पहुँच गए अर्बन इस्टेट के पास जहां दोनों शराबी लड़के उतर गए ! ऑटो चलते ही मेरे सामने बैठे एक शख्स का मोबाइल बजता है और वो ट्रैफिक के शोर के कारण मोबाइल का लाऊडस्पीकर ऑन कर अपने किसी साथी से बात करते हुए कहने लगा “लडकियां मस्त होनी चाहिए बाकी सब ठीक है ’’ दूसरी तरफ से जवाब आता है "टेंशन मत लो यार आज तक क्या तुम्हे कभी गलत माल दिया है" ! मुझे समझ में आ चुका था कि वो शख्स किसी आर्केस्ट्रा पार्टी से सम्बन्ध रखता है, जो विवाह शादियों में नाच गाने के लिए बुकिंग करती है !

इसके बाद उसे एक और कॉल आई और वो फिर मोबाइल का लाऊडस्पीकर चालू कर कहने लगा “भाजी आपका काम हो जाएगा मैंने बात कर ली है लडकियां मस्त मिलेंगी आपको , हमारी पार्टी पटिआला जिले कि सबसे मशहूर पार्टी है ”! दूसरी तरफ से जवाब आता है कि "वो तो ठीक है पर यार अगर साथ में जुगाड़ भी मिल जाए तो सोने पे सुहागा हो जाएगा" ! आर्केस्ट्रा पार्टी से जुड़ा शख्स कहने लगा "नहीं नहीं हम ऐसा काम नहीं करते" दूसरी और से आवाज़ आती है "पांच हज़ार ज्यादा ले लेना मगर जुगाड़ का इंतजाम ज़रूर कर दो" ! पार्टी का बंदा कहने लगा "हम ऐसा काम नहीं करते हम सिर्फ नाच गाने और मनोरंजन तक सीमित है" ! खैर बुकिंग करवाने वाला ग्राहक ना माना और कहने लगा हम कोई और पार्टी से बुकिंग करवा लेंगे !

अब इस सारे वाक्या से पता लगता है कि कुछ लोग आर्केस्ट्रा पार्टी से जुडी लड़कियों को सिर्फ और सिर्फ गलत नज़र से ही देखते है और उन्हें सिर्फ एक जुगाड़ समझा जाता है लेकिन वो लोग ये नहीं जानते कि इस धंधे से जुडी लड़कियों को परिवार कि कई मजबूरियों के कारण इस धंधे को अपनाना पड़ता है ! ऐसे लोगों कि सोच ना जाने कब बदलेगी ? खुदा खैर करे !

Tuesday, February 2, 2010

"मेरी नानी की दुआओं का असर"




सुनील कटारिया
जालंधर




26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस की शाम ! हॉस्टल के कॉमन रूम में बैठा मैं इन्टरनेट पर काम कर रहा था ! शाम के करीब सात बजे थे उस वक़्त और अगले दिन 27 जनवरी को हम सब विभाग के विधार्थियो को 28 , 29 जनवरी को होने वाले मीडिया फेस्ट में हिस्सा लेने के लिए गुरु की नगरी अमृतसर शाम को रवाना होना था ! क्यूंकि 27 जनवरी को अमृतसर पहुंचना था इसलिए गणतंत्र दिवस की शाम से लगातार मेरा सैल फोन बज रहा था मीडिया फेस्ट में जाने वालों के नाम लिखने के लिए, तभी एक मायूसी भरी खबर के साथ मेरे पिता जी का फोन आया की "सन्नी तेरे नानी जी अब नहीं रहे"!
इतना सुनते ही मुझमे मायूसी छा गई और उस रात मैं मुश्किल से हॉस्टल की मैस की केवल दो रोटिया ही खा पाया ! रात मुझे अच्छे से नींद भी ना आई क्यूंकि मेरे ख्यालों में मेरी नानी का चेहरा जो बार बार आ रहा था ! रात नींद ना आते देख मैंने 12 बज कर 30 मिनट पर अपनी माँ और पिता जी से फोन पर बात की तो मन को कुछ सुकून मिला ! ख़ैर रात के करीब 1 बजे होंगे जब मुझे नींद आई ! सुबह फिर 4 बजे का अलार्म बजते ही मैं उठ गया क्यूंकि उस दिन मेरी रेडियो पर ड्यूटी थी और मुझे रेडियो स्टेशन पर 5 बज कर 30 मिनट से पहले रिपोर्ट करना था ! वैसे तो ड्यूटी दोपहर 12 : 30 पर समाप्त होती है लेकिन उस दिन अमृतसर जाने को लेकर मुझे 10 बजे ही अपने सीनिअर से छुट्टी लेनी पड़ी !
रेडियो स्टेशन से वापिस यूनीवर्सिटी पहुंचा तो अमृतसर जाने के लिए विभाग के दफ्तर से कुछ कागजात तैयार करवाए और अपने सहयोगी गुरदीप सिंह , रामिश नकवी , अमृत सिंह को लेकर कभी डीन (विधार्थी) तो कभी डीन (अकादमिक) के हस्ताक्षर के लिए इधर उधर जाते रहे ! ऐसे कुछ काम करते करते दोपहर का 1 बज गया, सुबह 4 बजे का खाली पेट था उस दिन मैं और तभी मेरे साथी गुरदीप की बहन अमृत जो हमारी सीनिअर भी रही हैं उस दिन कुछ काम से यूनीवर्सिटी आई और साथ में खाना भी लेकर आई ! तभी हमने खाना खाया और कुछ ही देर में विभाग के पुराने विधार्थी और आज कल पंजाबी ट्रिबुन अखबार के सम्पादक वरिंदर वालिया विभाग के सेमीनार हॉल में पहुंचे ! ये समागम वरिंदर वालिया जी को सम्मानित करने के लिए रखा गया था जिसमे यूनीवर्सिटी के उप- कुलपति डॉ. जसपाल सिंह भी मौजूद थे ! समागम में पिछली कतार में कुर्सी पर बैठा मैं समागम में पहुंचे लोगों की बाते सुन तो रहा था लेकिन मेरा दिमाग कहीं और ही था ! दिल में मायूसी लिए शाम करीब 4 बजे हम विभाग से बस में बैठे और अमृतसर के लिए रवाना हो गये ! जैसा अक्सर होता है की जब किसी शिक्षा संस्थान की टीम इकठे कहीं जाती है तो मस्ती करती हुई जाती है , मेरे सहयोगी बस के बिलकुल पिछली तरफ अपनी मस्ती में मस्त थे और मैं बस की पहली सीट पर बैठा अकेला ज़ेहन में कुछ लिए अपनी मंज़िल (अमृतसर) पर पहुँचने के लिए आतुर था ! रात हम 11 बजे के करीब अमृतसर पहुंचे !
अगले दिन यानि मीडिया फेस्ट के पहले दिन हमे सुबह 9 बजे बी.बी.के. डी.ए.वी कॉलेज फॉर वोमेन पहुंचना था जहां ये मीडिया फेस्ट होना था ! अपनी यूनीवर्सिटी की तरफ से इस फेस्ट में हिस्सा लेने वाले विधार्थिओं के नाम दर्ज करवाने के बाद हम सब हिस्सा लेने वाले विधार्थी अपनी अपनी आइटम का इन्तजार करने लगे ! मैंने भी इस मीडिया फेस्ट में करीब 3 आइटमो में हिस्सा ले रखा था !
इन सभी गतिविधियो के दौरान मेरे समक्ष कई बार मेरी नानी से जुडी यादें मेरी आँखों के सामने आती रही ! मीडिया फेस्ट के दुसरे और अंतिम दिन यानी शुक्रवार 29 जनवरी को मेरी माता जी और मेरे कुछ रिश्तेदार नानी की अस्थियाँ प्रवाह करने के पश्चात शाम के समय ब्यास से लौट रहे थे और यहाँ दूसरी तरफ मीडिया फेस्ट में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागीओं के लिए परिणाम घोषित हो चुके थे ! परिणाम घोषित होते ही 6 बज कर 30 मिनट पर मैंने अपनी माता जी को फोन कर परिणाम के बारे में भी बताया ! उस मीडिया फेस्ट में हमारी यूनीवर्सिटी ने करीब 7 अवार्ड झटके ! ये शायद मेरी नानी की दुआओं का ही असर था का इस मीडिया फेस्ट में मुझे 4 अवार्ड मिले ! नानी को मेरा शत शत प्रणाम और सलाम !

"सर मेरा झुका रहता है बुजुर्गो के आगे,
छुपी रहती हैं इसलिए दुनिया में यादें"