Thursday, April 8, 2010

एक युवा जर्नलिस्ट की दिल की आवाज़ !!


मेट्रो कार्ड को वापस कर उससे मिले पचास रुपये से उस दिन का किराना घर में आया था। मुझे मेरे दोस्त को उस कार्ड को वापस कराते वक्त एक ही शर्म महसूस हो रही थी कि क्या घंटा जिंदगी जी रहे हैं हम। दोनों पेशे से पत्रकार लेकिन अगर कोई तीसरा शख्स रास्ते में मिल जाए या दफ्तर आकर चाय पीने को कह दे तो ये भी नही कह सकते कि हम फटेहाल हैं। जब मैं पैदा हुआ था तो घर में तरक्की ही तरक्की हुई थी। जैसे-जैसे बड़ा हुआ घर का धन धीरे-धीरे मुझ पर खर्च होता चला गया। क्या दिमाग चला कि यह गड़बड़ लाइन चुन ली। गड़बड़ी हमारे साथ जिंदगी ने भी की। समय बदलने के साथ कई बुरे शौक लग गये।
पहले नौकरी की चिंता में पीते थे। फिर नौकरी मिली तो काम के तनाव में। फिर पैसा ना मिलने के गम में और अब तो इसलिए पीते हैं कि साला नहीं पिएं तो नींद ही नहीं आती। इस जिंदगी ने सब कुछ खत्म कर दिया। जिसकी शादी हो गई है, वो रोज खून के आंसू रोता है। वह बीवी को ऐसे गरियाता है जैसे उसने किसी और को अपना लिया हो। और जिनकी शादी नहीं हो रही वो इसलिए परेशानी में हैं कि शादी के बाद बीवी को क्या खिलाएंगे?
पांच साल में इतने पैकेज काटे, कई खबरें लाइव की। कई फोनो लिए लेकिन जिंदगी के लिए कुछ नहीं कर पाए। हमे निचोड़ लिया गया। हमारे हक की अवाज का गला घोट दिया गया। हम हर रोज एक ऐसे बलात्कार का शिकार होते गये जिसने हमारे अंदर के जुनून को जंग लगा दिय़ा। ऐसा नहीं कि हम अकेले हैं। हम जैसे कई पत्रकार हैं जो इस मीडिया में मंदी की मार के साथ-साथ अपने-अपने दफ्तर की अंदरुनी दिक्कतों का शिकार हो रहे हैं जो अब मीडिया के लिए आम हो गई है। क्या होगा... क्या हम ऐसे हो जाएंगे.... हम तो पूजा-पाठ धर्म-कर्म में विश्वास भी करते हैं। क्या अब नास्तिक होकर देखें?

लेखक युवा टीवी पत्रकार हैं और उन्होंने नाम ना प्रकाशित करने का अनुरोध किया है |


1 comment:

  1. आपने बिलकुल ठीक लिखा है यही पत्रकारों की जिन्दगी है .ढेर लगे हुए है पत्रकारों के पंजाबी गायकों की तरह...... इसलिए इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिये जितने भी काम कर लो चानेल आपकी कद्र नही डालेगा और अगर आप अपनी तनखाह भी मांगते है तो वो आपको बाहर नकलने से गुरेज नही करेगा क्यूंकि आपके बाहर जाते ही interview के लिये उस चैनल में सेंकडो लोगो की लाएने लग जायगी और वो चानल आपको भूल जायगा चाहे आपने उसके लिये अपनी रोटी परिवार दावो पर लगाकर दिन रात बिना देखे काम किया हो यह असल में स्ट्रींगर की जिन्दगी है.

    ReplyDelete